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दकनी सूफ़ी काव्य
वाह वाह बुलबुले गुलज़ार इश्क़
।। हिकायते शागिर्द बा उस्ताद सवाल कर्द ।।एक था शागिर्द लिये साहब कमाल
वजदी
सूफ़ी लेख
फ़िरदौसी - सय्यद रज़ा क़ासिमी हुसैनाबादी
ऊ उस्ताद बूद-ओ-मा शागिर्दऊ ख़ुदावंद बूद-ओ-मा बंदः
ज़माना
सूफ़ी लेख
दानापुर - सूफ़ियों का मस्कन
शागिर्द ‘वहीद’ के हैं दोनों अकबरहम-मश्क़ भी हम दोनों रहे हैं अक्सर
रय्यान अबुलउलाई
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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अकबर दानापुरी
एक रुबाई भी इस तअ’ल्लुक़ को ज़ाहिर करती है :शागिर्द वहीद के हैं दोनों अकबर
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
शागिर्द इस ज़बाँ में हूँ उस ज़ुल-जलाल काहाँ नज़्म-ए-फ़ारसी में हूँ ग़ालिब से मुस्तफ़ीद
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ग़ज़ल
अदीब-ए-इ'श्क़ के शागिर्द हैं फ़रहाद और मजनूँकि कोह-ओ-दश्त का मकतब है गर्म इन दो ख़ली हरीफ़ों सीं
सिराज औरंगाबादी
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी 'तुराब' दकनी
सुने यू बात जो शागिर्द सारेनंगे पावाँ चे दौड़े सब बिचारे
शाह मियाँ तुराब दकनी
ग़ज़ल
ता'लीम और त'अल्लुम सब है नियाज़ अपनाशागिर्द हैं तो हम हैं उस्ताद हैं तो हम हैं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
सूफ़ी लेख
हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी के जलीलुल-क़द्र ख़ुलफ़ा - सय्यद मौसूफ़ अशरफ़ अशरफ़ी
सूफ़ीनामा आर्काइव
ग़ज़ल
'वज़ीर' उस का हूँ मैं शागिर्द जिस को कहते हैं मुंसिफ़लिया मुलक-ए-मा'नी बादशाह-ए-शा’इराँ हो कर