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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
सूफ़ी कहानी
शेर भेड़िए और लोमड़ी का मिलकर शिकार को निकलना - दफ़्तर-ए-अव्वल
शेर, भेड़िया और लोमड़ी मिलकर शिकार की तलाश में पहाड़ों पहाड़ों निकल गए अगरचे शेर-ए-नर को
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
ग़फ़लत का हम शिकार हैं सरकार-ए-दो-जहाँआ'सी हैं गुनाहगार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ
ख़्वाजा शायान हसन
कश्मीरी संत काव्य
सिंहनी हंद शिकार पाज़ कव ज़ाने
सिंहनी हंद शिकार पाज़ कव ज़ाने,हांठ कव ज़ाने पोतरय दोद।
लल दद्द
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ग़ज़ल
राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचेबात बढ़ कर ये ख़ुदा जाने कहाँ तक पहुँचे
हफ़ीज़ होश्यारपुरी
कलाम
ज़रा और मुस्कुरा लूँ दिल-ओ-जाँ शिकार-ए-ग़म हैंकि मसर्रतों के लम्हे मेरी ज़िंदगी में कम हैं
बह्ज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी
हसरत अजमेरी
सूफ़ी कहानी
हज़रत-ए-उ’मर के पास सफ़ीर-ए-क़ैसर का आना - दफ़्तर-ए-अव्वल
क़ैसर का एक सफ़ीर दूर-दराज़ बयाबानों को तय कर के हज़रत-ए-उ’मर से मिलने को मदीने पहुंचा।
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
सुल्तान-ए-मन अमीन-ए-मन ज़ीनत-ए-इंतिज़ार-ए-मनआप की दीद-ए-सुकून-ए-दिल दरमाँ दिल-ए-अफ़गार-ए-मन