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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
बैत
सरशार मय-ए-इ'श्क़ से है मेरा बदन
सरशार मय-ए-इ'श्क़ से है मेरा बदनमेरी रगों में तो अब वही दौड़ती है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
शगुफ़्त आयद मुरा बर दिल अज़ीं ज़िंदान-ए-सुल्तानीकि दर ज़िंदान-ए-सुल्तानी मनम सुल्तान-ए-ज़िंदानी
हकीम सनाई
पद
पस्तो - हालत बदन के बीच हाल ख़याल ना रहै
हालत बदन के बीच हाल ख़याल ना रहैकहुँ क्या कलेजे बीच लैलै लहर को कहै
तुलसी साहिब हाथरस वाले
शे'र
बुलबुल सिफ़त ऐ गुल-बदन इस बाग़ में हर सुब्हतेरी बहारिस्तान का दीवाना हूँ दीवाना हूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
बाँद कर गुलनार चीरा गुल-बदन जाता है बाग़आज ख़ातिर में तिरे बुलबुल की मिस्मारी है क्या
तुराब अली दकनी
शे'र
सर-ओ-बर्ग-ए-ख़ुशी ऐ गुल-बदन तुझ बिन कहाँ मुझ कोगुलिस्तान-ए-दिल आया फ़ौज-ए-ग़म की पाएमाली में
मीर मोहम्मद बेदार
ग़ज़ल
वो ख़ुश-बदन ख़ुश-जमाल मुझे बहुत प्यारा हैवो ना-बलद है लेकिन अपनी ही नज़र में वो हमारा है
शैख़ सुभान गुल
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी