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ग़ज़ल
शमशाद शाद
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दकनी सूफ़ी काव्य
नजातनामा
समज क्यों सकूँ क़ादिरे-जुल जलालमेरा जिव समजने मुँजे नंई मजाल
मोहम्मद अमीन अयाग़ी
दकनी सूफ़ी काव्य
वाह वाह बुलबुले गुलज़ार इश्क़
चल सकूँ मैं किस वज़ा सीमुर्ग़ लगजिस्को होवे इब्तिदा सूँ हाल सूँ
वजदी
कलाम
संग दर जमाल हो या कि हो नक़्श पाए दोस्तसज्दों से बाज़ रह सकूँ रह सकूँ वो भी बाज़ मैं