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सर्फ़-ए-ग़म हम ने नौजवानी की

ख़्वाजा मीर असर

सर्फ़-ए-ग़म हम ने नौजवानी की

ख़्वाजा मीर असर

MORE BYख़्वाजा मीर असर

    सर्फ़-ए-ग़म हम ने नौजवानी की

    वाह क्या ख़ूब ज़िंदगानी की

    अपनी बीती अगर मैं तुझ से कहूँ

    बात निबड़े उस कहानी की

    तेरे दाग़ों की ग़म-ए-उल्फ़त

    ख़ूब हम ने भी बाग़बानी की

    जों निगह-ए-दिल गया है आँखों की राह

    गरचे हम ने निगाहबानी की

    किस के हाँ तुम करम नहीं करते

    कभो इधर मेहरबानी की

    अपने नज़दीक दर्द-ए-दिल में कहा

    तेरे नज़दीक क़िस्स:-ख़्वानी की

    हर्ज़ः-गोई से मुझ को दी है नजात

    हैगी मिन्नत ये बे-ज़बानी की

    नहीं ताक़त कि दम निकाल सकूँ

    अब ये नौबत है ना-तवानी की

    'असर' इस हाल पे भी जीता है

    क्या कहूँ उस की सख़्त-जानी की

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-असर, संकलन: कामिल क़ुरैशी (पृष्ठ 230)
    • रचनाकार : मीर असर
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1978)

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