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महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
सो दरसन ग्रंथन मते बरनत हैं कबि चारि।श्रवन सपन अरु चित्र पुनि सौतुष होत बिचारि।।594।।
रसलीन
खंडकाव्य
यूसुफ़ जुलेखा (स्वप्न दर्शन खंड)
भूषन रतन उतारि जो डारा। दुखदायक भै सभै सिंगारा।मनमँह सोच करै मुरझाई। लैगा प्रान सपन देखाई।