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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
बैत
जी चाहता है उम्र-ए-मोहब्बत न ख़त्म हो
जी चाहता है उम्र-ए-मोहब्बत न ख़त्म होमर जाइए किसी की तमन्ना लिए हुए
फ़ितरत वारसी
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ग़ज़ल
मुझे शौक़-ए-दीद में पा के गुम वो नक़ाब उलट के जो आ गएनज़र और कुछ भी न आ सका वो मेरी नज़र में समा गए
सदिक़ देहलवी
सूफ़ी कहावत
ज़ुल्फ़-ए-खूबां ज़ंजीर-ए-पा-ए-अक़्ल अस्त-ओ-दाम-ए-मुर्ग़-ए-ज़ीरक
हसीनों की ज़ुल्फ अक़्लमंद के पाँव की ज़ंजीर और होशियार पक्षियों के लिए फंदा होती है।
वाचिक परंपरा
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आमदम ता रू निहम बर ख़ाक-पा-ए-यार-ए-ख़ुदआमदम ता 'उज़्र ख़्वाहम सा'अते अज़ कार-ए-ख़ुद
रूमी
बैत
जानम फ़िदा बर पा-ए-तू दीवानः-ए-ज़ेबा-ए-तू
जानम फ़िदा बर पा-ए-तू दीवानः-ए-ज़ेबा-ए-तूहस्तम असीर-ए-ज़ुल्फ़-तू अंदर दिलम पैदा तुई
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
पा-ए-यार-ए-दिल-रुबा रा सज्दः-गाहे साख़्तमता शवद हासिल विसाल-ए-यार राहे साख़्तम