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अरिल्ल
अरिल छंद - प्रान चढ़ो असमान सहज घर जाइया
प्रान चढ़ो असमान सहज घर जाइयासुन्न सहर झकझोर सुरति ठहराइया
गुलाल साहब
दोहा
बोलन चितवन चलन में, सहज जनाई देत।
बोलन चितवन चलन में, सहज जनाई देत।छिपत चतुरई कर कहूं, अरे हिये को हेत।।
रसनिधि
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अरिल्ल
अरिल छंद - सुन्न सहर आजूब सहज धुनि लागई
सुन्न सहर आजूब सहज धुनि लागईइँगल पिंगल को खेल अमी तब पागई
गुलाल साहब
शबद
मन तू ऐसा ब्याह करा रे तेरी सहज भक्ति हो जारे
मन तू ऐसा ब्याह करा रे तेरी सहज भक्ति हो जारेसातों वान समझ के न्हाले निभय ढोल बजा रे
घीसा साहेब
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
रैदास कहते है- भाई रे सहज बंदो लोई। बिनु सहज सिद्धि न होई।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
पद
चेतावनी -घट भीतर तू जाग री, है सुरत पुरानी ।
नरदेही पाई सहज, सतसंग समानी।सुरत घाट अब पाइया, धुन शब्द पिछानी।।
शिवदयाल सिंह
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
अला राम रा सहज ए साचि राचै।। अला बाप चरिताल हाथे बँधावै,