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शबद
मैं ने बहुतों के बोल सहे सितमगर तेरे लिए
मैं ने बहुतों के बोल सहे सितमगर तेरे लिएचाचरी भूचरी अगोचरी मुद्रा मैं ने त्रिकुटी ध्यान धरे
अवगतदास
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
मेह सहै सिर, सीत सहे तन,धूप समै जो पँचागिनि वारी।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- पहली दास्तान
की राह न कोई, सहे ग़ुलामी का अ’ज़ाब!"हाज़िर हुज़ूर में है नियाज़, बूढ़ा कुलाल बंदानवाज़,
लियोनिद सोलोवयेव
ग़ज़ल
वतनों छोड़ होइओसु परदेसी, पाड़न पाड़ि अवल्लेदुक्ख सहे सुख पायआ नाहीं, सड़्या मैं करम दा
मियां मोहम्मद बख़्श
मुख़म्मस
वक़्त-ए-नज़्अ’ है चले आओ कि आँखों में है दमसहने वाला भी कहाँ तक सहे फुर्क़त के सितम
नाज़ाँ शोलापुरी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(191) द्वारे मोरे खड़ा रहे। धूप छाव सब सर पर सहे।।जब देखो मोरी जाए भूख। ऐ सखी साजन ना सखी रूख़।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(191) द्वारे मोरे खड़ा रहे। धूप छाव सब सर पर सहे।। जब देखो मोरी जाए भूख। ऐ सखी साजन ना सखी रूख़।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सलोक
फ़रीदा मंझ दरवाजे वैहद्या डिठम मैं ढड़्याल
फ़रीदा मंझ दरवाजे वैहद्या डिठम मैं ढड़्यालगलहु जंजीर न उतरे चोट सहे कपाल
बाबा फ़रीद
नज़्म
मुख़म्मस बर ग़ज़ल-ए-हज़रत-'हाफ़िज़'-शीराज़ी
तेरी दूरी में सहे वो रंज सख़्तकामम अज़ तल्ख़ी-ए-ग़म चूँ ज़ह्र-गशत
औघट शाह वारसी
राग आधारित पद
राग बिलावल- हरि बिनु तेरो नाहिं हितू कोई या जगमाहीं
परकाजें बहु दुःख सहे हरि सुमिरण खोया'सहजो' बाई जमीं धरे शिर धुनि-धुनि रोया