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सूफ़ी लेख
ख़्वाजा साहब पर क्या कहती हैं पुरानी किताबें?
हिन्दोस्तान में सिलसिला-ए-तसव्वुफ़ का चराग़ कई सदियों से रौशन है। इसकी अज़्मत के तज़्किरे भरे पड़े
रय्यान अबुलउलाई
दोहरा
किबला ख़्वाजा नूर मुहमद साहब शहर मुहारां ।
क़िबला ख़्वाजा नूर मुहमद साहब शहर मुहारां ।हिन्द सिंध पंजाब दे विच्च चा कीतो फैज़ हज़ारां ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
अरिल्ल
अरिल छंद - आपु करहु नर साफ़ साहब सत भावई
आपु करहु नर साफ़ साहब सत भावईनिसु बासर करि प्रेम राम गुन गावई
गुलाल साहब
दोहरा
मुलतानी धनासिरी, एकताला- या हज़रत ख़्वाजा कुतुब साहब, मेरी सुन के नेक न
या हज़रत ख़्वाजा कुतुब साहब, मेरी सुन के नेक न“शाहे-आलम” ख़ादिम तुम्हरो तुम सूं मांगे माल मुल्क
शाह आलम सानी
गूजरी सूफ़ी काव्य
साहब मेरा खड़ा बकोनाँ
साहब मेरा खड़ा बकोनाँजियूँ काथी बिन पात और चूना
क़ाज़ी महमूद दरियाई
ना'त-ओ-मनक़बत
मा’दिन-ए-हिल्म-ओ-हया हज़रत-ए-ग़ौसुस्सक़लैनमख़्ज़न-ए-जूद-ओ-सख़ा हज़रत-ए-ग़ौसुस्सक़लैन
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़ख़्र-ए-रुसुल से साहिब-ए-जूद-ओ-सख़ा से हैबुनियाद दीन-ए-हक़ की रसूल-ए-ख़ुदा से है
इल्तिफ़ात अमजदी
ना'त-ओ-मनक़बत
पैकर-ए-ख़लक़-ओ-मोहब्बत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’लीसाहब-ए-किरदार-ओ-सीरत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’ली