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ना'त-ओ-मनक़बत
कौन हो मसनद-नशीं ख़ाक-ए-मदीना छोड़ करख़ुल्द देखे कौन कू-ए-शाह-ए-बतहा छोड़ कर
पीर नसीरुद्दीन नसीर
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह-ए-दौला साहब-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
शाह सय्यदा साहब:जिस ज़माना का हम ज़िक्र करते हैं ये वो ज़माना है जब कि ग्यारहवीं
सूफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़र्श पे मसनद नशीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ातुम सर-ए-अर्शे बरीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा
ताहा अज़ीज़
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सूफ़ी लेख
ख़्वाजा साहब पर क्या कहती हैं पुरानी किताबें?
हिन्दोस्तान में सिलसिला-ए-तसव्वुफ़ का चराग़ कई सदियों से रौशन है। इसकी अज़्मत के तज़्किरे भरे पड़े
रय्यान अबुलउलाई
दोहरा
किबला ख़्वाजा नूर मुहमद साहब शहर मुहारां ।
क़िबला ख़्वाजा नूर मुहमद साहब शहर मुहारां ।हिन्द सिंध पंजाब दे विच्च चा कीतो फैज़ हज़ारां ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
अरिल्ल
अरिल छंद - आपु करहु नर साफ़ साहब सत भावई
आपु करहु नर साफ़ साहब सत भावईनिसु बासर करि प्रेम राम गुन गावई
गुलाल साहब
दोहरा
मुलतानी धनासिरी, एकताला- या हज़रत ख़्वाजा कुतुब साहब, मेरी सुन के नेक न
या हज़रत ख़्वाजा कुतुब साहब, मेरी सुन के नेक न“शाहे-आलम” ख़ादिम तुम्हरो तुम सूं मांगे माल मुल्क
शाह आलम सानी
गूजरी सूफ़ी काव्य
साहब मेरा खड़ा बकोनाँ
साहब मेरा खड़ा बकोनाँजियूँ काथी बिन पात और चूना