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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(101) सूली चढ़ मुसकत करे, स्याम बरन एक नार।दो से दस से बीस से, मिलत एकही बार।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(101)सूली चढ़ मुसकत करे, स्याम बरन एक नार। दो से दस से बीस से, मिलत एकही बार।।
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ज़ुहद इबादत चाहे देखे
ज़ुहद इबादत चाहे देखे, नहीं हरगिज़ ध्यान न करदा ।शाह मनसूर चढ़ाया सूली, अते यूसफ़ कीतो सू बरदा ।
हाशिम शाह
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ए दिल ! तूं दिलबर दे बदले
ए दिल ! तूं दिलबर दे बदले, सौ मेहना कर कर मारी ।जां मनसूर चढ़ाया सूली, इह गल लाई कर प्यारी ।
हाशिम शाह
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मजनूं कूक कूंजां दी सुन के
झब्ब दे कूक तुसाडी सुणसी, पर जे कुझ मूंहों न बोलो ।हाशम यार चढ़ावगु सूली, तुसीं कहन प्रेम न खोल्हो' ।
हाशिम शाह
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कौन कबूल ख़राबी करदा
आपने हाथ न सूल सही दी, पर सूली लेख सहावे ।ख़ुश हो देख सबर कर हाशम, तैनूं जो कुझ लेख दिखावे ।