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ना'त-ओ-मनक़बत
सर ल'ईनों के उछलते आएँगे हर सू नज़रआ रहा है सू-ए-मक़्तल शहसवार-ए-फ़ातिमा
हाफ़िज़ फ़ज़्ल हुसैन
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दोश मन पैग़ाम कर्दम सू-ए-तू इस्तार: रागुफ़्तमश ख़िदमत रसाँ अज़ मन तू आँ मह-पारः रा
रूमी
फ़ारसी कलाम
ऐ तालिब-ए-फ़िरदौस ब-रौ सू-ए-मोहम्मदचूँ ख़ुल्द-ए-बरीं आमदः दर कू-ए-मोहम्मद
अमीर हसन अला सिज्ज़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ख़्वेश रा चूँ ख़ार दीदम सू-ए-गुल ब-गुरेख़्तमख़्वेश रा चूँ तल्ख़ दीदम दर शकर आवेख़्तम
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
कभी सू-ए-ग़रीबाँ भी नज़र हो या रसूल-अल्लाहमदीने पाक का हुक्म-ए-सफ़र हो या रसूल-अल्लाह
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
नज़्म
अक्सर औक़ात सू-ए-ज़न से हुई
अक्सर औक़ात सू-ए-ज़न से हुईदानिश-ए-ज़िंदा बद-तर अज़ मुर्द:
मयकश अकबराबादी
फ़ारसी कलाम
हाशा लिल्लाह कज़ रुख़त चश्म अफ़्गनम सू-ए-दिगरख़ुश नमी-आयद ब-जुज़ रू-ए-तूअम रू-ए-दिगर