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शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
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ना'त-ओ-मनक़बत
करम का वक़्त है हद से ज़्यादा है परेशानीतो आख़र मुहिउद्दीन अल-मदद या ग़ौस समदानी
कामिल शत्तारी
सूफ़ी उद्धरण
सबसे ज़्यादा बद-क़िस्मत इन्सान वो है जो हद दर्जा ग़रीब हो और ख़ुदा पर यक़ीन न रखता हो।
सबसे ज़्यादा बद-क़िस्मत इन्सान वो है जो हद दर्जा ग़रीब हो और ख़ुदा पर यक़ीन न रखता हो।
वासिफ़ अली वासिफ़
दोहा
बे-हद की हद मीम सों भई ‘पेम’ मद होय
बे-हद की हद मीम सों भई 'पेम' मद होयबिला मीम अहमद कहै औ काकी हद होय
बरकतुल्लाह पेमी
दोहरा
साहिब जी सुल्तान जी तुम बड़े गरीब-नवाज
हद हद करते सब गए बे-हद गया न कोयबे-हद के मैदान में रहे कबीरा सोय
अज्ञात
दकनी सूफ़ी काव्य
वाह वाह बुलबुले गुलज़ार इश्क़
क्यों कना तुझ साहबे दौलत अतालहै किते......नमने जो तूँ हद पर खुशहाल ?
वजदी
दकनी सूफ़ी काव्य
वसीयत उल हादी
करे इबादत ज्यों फ़रमाया साबित रख ईमानहुक्मे शरियत भी उस लाज़िम ज्यों फ़रमाया हद