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ना'त-ओ-मनक़बत
हो जाते हैं ख़ुद रस्ते हमवार मदीने केबुलवाते हैं जब शाह-ए-अबरार मदीने के
पीर नसीरुद्दीन नसीर
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
ज़ाँ कि ईं अंगुश्त-हा बर-दस्त-ए-मन हमवार नीस्तख़ल्क़ रा बे-दार बायद बूद ज़ाब-ए-चश्म-ए-मन
सूफ़ीनामा आर्काइव
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ना'त-ओ-मनक़बत
बुलाते हैं ख़ुदा के नेक बंदे अपनी चौखट परमदीने जाने का रस्ता यही हमवार करते हैं
डॉ. मंसूर फ़रिदी
ना'त-ओ-मनक़बत
आज भी ख़ुद्दारियों की राह ना-हमवार हैआज भी ख़तरे में ’अज़्म-ओ-जज़्बा-ए-बेदार है
नख़्शब जार्चवि
फ़ारसी कलाम
चु बा तर-दामनी ख़ूँ कर्द 'ख़ुसरौ' बा दो चश्म-ए-तरब-आब-ए-चश्म-ए-मिज़गाँ दामनश हमवार:-तर बादा
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
बुलंद-ओ-पस्त सब हमवार हैं याँ अपनी नज़रों मेंबराबर साज़ में होता है जूँ सर ज़ेर और बम का
ख़्वाजा मीर दर्द
फ़ारसी कलाम
'सा'दिया' बाक़ी न-मांद: अज़ शराब-ए-इ'श्क़-ए-फ़ज़्लसाल मस्त-ओ-माह-मस्त-ओ-रोज़-ओ-शब हमवार मस्त
सादी शीराज़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
चे ख़ुर्द ईं दिल दराँ महफ़िल कि हम-चु मस्त अंदर गिलअज़ाँ मय-ख़ानः चूँ मस्ताँ चे ना-हमवार मी-आयद
रूमी
फ़ारसी कलाम
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
सूफ़ी लेख
समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
मुझे ये लंबी तम्हीद इसलिए बाँधनी पड़ी ताकि भूक और ख़ुराक की क़िल्लत जैसे आ’लमी बोहरान
रहबर मिस्बाही
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी
14 रबीउ’ल-अव्वल233 हिज्री को हज़रत ने विसाल फ़रमाया था। विसाल के वक़्त उनके होने वाले जाँ-नशीन