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सूफ़ी उद्धरण
फ़क़ीर का मर्तबा ख़ुदा के नज़दीक बहुत बड़ा और अफ़ज़ल है।
फ़क़ीर का मर्तबा ख़ुदा के नज़दीक बहुत बड़ा और अफ़ज़ल है।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
कलाम
अमीरी कैसी क्या ये मर्तबा शाही वज़ीरी कातू ऐ ग़ाफ़िल शनासा-ए-मदारिज हो फ़क़ीरी का
ग़ुलाम अ’ली रासिख़
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ना'त-ओ-मनक़बत
चढ़ाया उन को काँधे पर रसूलुल्लाह ने अक्सरकोई हम-मर्तबा शब्बीर-ओ-शबर हो नहीं सकता
अ'ली हुसैन अशरफ़ी
सूफ़ी उद्धरण
इल्म का अर्थ पहचान है। इल्म के ज़रिए ही एक साधक ख़ुदा की बारगाह में ऊँचा मर्तबा हासिल करता है, लेकिन इस के लिए यह ज़रूरी है कि बंदा इल्म पर अमल भी करे।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़फ़र अली ख़ान
कलाम
करें हम किस की पूजा और चढ़ाएँ किस को चंदन हमसनम हम दैर हम बुत-ख़ाना हम बुत हम बरहमन हम
मीर शमसुद्दीन फ़ैज़
दोहरा
ख़्वाजा मुईनुद्दीन के आये हम दरबार
ख़्वाजा मुईनुद्दीन के आये हम दरबारपाई मुरादें जिय की, लागे नाहीं बार
शाह आलम सानी
कुंडलिया
हिंदू कहें सो हम बड़े, मुसलमान कहें हम्म ।
हिंदू कहें सो हम बड़े, मुसलमान कहें हम्म ।एक मूंग दो झाड़ हैं, कुण ज्यादा कुण कम्म।।