मिला नाम-ए-ख़ुदा वो मर्तबा तुझ को हसीं होकर
मिला नाम-ए-ख़ुदा वो मर्तबा तुझ को हसीं होकर
फ़लक करता है मुजरा तेरी चौखट को ज़मीं होकर
बचेगी आबरू दुनिया में तो उ'ज़्लत-नशीं होकर
सदफ़ में बैठ रहना चाहिए दुर्र-ए-समीं होकर
ख़राश-ए-ग़म ने कैसा मेरे दिल का रंग चमकाया
ज़्यादा हो गया क़ीमत में कुंदा ये नगीं होकर
कलेजा तख़्ता सौसन का बना है नीले दाग़ों से
ग़ज़ब की ली हैं दिल में चुटकियाँ पहलू-नशीं होकर
कमर को बाल जब मैं ने कहा झुँझला के फ़रमाया
न समझे आप मोटी बात भी बारीक-बीं होकर
बड़ा ही फ़ख़्र क़ासिद को हुआ ख़त पा के डरता हूँ
फ़लक पर उड़ न जाए ये कहीं रूह-उल-अमीं होकर
तसव्वुर है वही पेश-ए-नज़र हर दम हसीनों का
तमाशा है रह-ए-महफ़िल में हम ख़ल्वत-नशीं होकर
कमर है बाल सी ऐ गुल-बदन लचके न चलने में
न इतना चाहिए मूबाफ़ भारी नाज़नीं होकर
बता दे ऐ फ़लक तूही तअ'ज्जुब हम को आता है
कि ख़ुश होता है फिर क्यूँ कोई अंदोहगीं होकर
बहार-ए-लाला-ओ-गुल फिर कभी काहे को देखेंगे
चले हैं इस चमन से हम निगाह-ए-वापसीं होकर
मलूँ जिस दम मैं आँखें उन के साइ'द से दम-ए-रुख़्सत
तो रह जाना वहीं ऐ पर्दा-ए-चश्म आस्तीं होकर
जो दिल भी मेहरबाँ हो कब ज़बाँ है उन के क़ाबू में
जो लब तक हाँ भी आती है निकलती है नहीं होकर
लगाया तो गले से पर लगाई तेग़ भी उस ने
मिला तो ई'द के दिन वो मगर चीं बर-जबीं होकर
ख़ुदा मोमिन की सूरत रिज़्क़ काफ़िर को भी देता है
किसी को भूल जाए क्या वो रब्बुल-आलमीं होकर
जगह पकड़ी है क्यूँ सुनने में दिल ने इस से क्या हासिल
किसी अंगुश्तरी में इस को रहना था नगीं होकर
तसव्वुर बंध गया जिस शाम को उस हूर-तलअ'त का
तो आया ख़्वाब आँखों में परी बन कर हसीं होकर
'अमीर' इक आईना-ख़ाना था दुनिया जिस को कहते हैं
वही सूरत रही पेश-ए-नज़र निकली कहीं होकर
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