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सूफ़ी कहावत
ज़ुल्फ़-ए-खूबां ज़ंजीर-ए-पा-ए-अक़्ल अस्त-ओ-दाम-ए-मुर्ग़-ए-ज़ीरक
हसीनों की ज़ुल्फ अक़्लमंद के पाँव की ज़ंजीर और होशियार पक्षियों के लिए फंदा होती है।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी
हसरत अजमेरी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहाहश्र लग ये मुज़लिमा सय्याद पर बाक़ी रहा
सिराज औरंगाबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दाम-हा गुस्तर्द ईं ज़ुल्फ़-ए-परेशान-ए-शुमामुर्ग़-ए-दिल शुद सैद ऐ जानम ब-क़ुर्बान-ए-शुमा
शाह अकबर दानापूरी
ना'त-ओ-मनक़बत
बलाएँ ग़म की टलें और हवा-ए-कैफ़ चलीलिया ज़बान से जिस दम जो मैं ने नाम-ए-'अली
मोहम्मद हुज़ैफ़ा
ना'त-ओ-मनक़बत
मौसम-ए-गुल मौसम-ए-गुलज़ार होना चाहिएहर घड़ी ज़िक्र-ए-शह-ए-अबरार होना चाहिए