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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का अपने हाल-ए-ज़ाहिर के ख़िलाफ़ हवा बांधना
एक शख़्स इ’राक़ से बिलकुल बे सर-ओ-सामान हो कर आया। दोस्तों ने उस से दूरी-ओ-जुदाई के
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
बलाएँ ग़म की टलें और हवा-ए-कैफ़ चलीलिया ज़बान से जिस दम जो मैं ने नाम-ए-'अली
मोहम्मद हुज़ैफ़ा
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सूफ़ी कहावत
कौन सा दरख़्त है, जिसे हवा नहीं लगी
कौन सा दरख़्त है, जिसे हवा नहीं लगीथोड़े बहुत कष्ट सभी को भोगने पड़ते हैं
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
सरज़मीन-ए-चिश्त की आब-ओ-हवा कुछ और हैदीन-ओ-दुनिया से निराला और ही कुछ तौर है
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अब्र-ए-ख़ुश अस्त व वक़्त-ए-ख़ुश अस्त व हवा-ए-ख़ुशसाक़ी-ए-मस्त दादः ब-मस्ताँ सला-ए-ख़ुश
अमीर ख़ुसरौ
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
जुज़ हवा-ए-यक बुत-ए-गुल-रू कि दर सर दाश्तममन कुजा मैल-ए-ज़र-ओ-बख़्त-ए-सिकन्दर दाश्तम