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सूफ़ी लेख
दानापुर - सूफ़ियों का मस्कन
इन्सान जिससे मोहब्बत करता है फ़ितरी तौर पर उसका ज़िक्र ज़्यादा करता है।वो चाहता है कि
रय्यान अबुलउलाई
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
फ़ारसी कलाम
दिल-ओ-जिगर नज़र-ओ-दीद: जान-ओ-तन हम: ऊस्तहर आंचे हस्त दरीं ख़िरक़:-ए-कोहन हम: ऊस्त
ग़ुलाम इमाम शहीद
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ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुश-ख़िसाल-ओ-ख़ुश-ख़याल-ओ-ख़ुश-ख़बर ख़ैरुल-बशरख़ुश-नज़्झ़ाद-ओ-ख़ुश-निहाद-ओ-ख़ुश-नज़र ख़ैरुल-बशर
शे'र
बाग़-ओ-बहिश्त-ओ-हूर-ओ-जन्नत अबरारों को कीजिए इनायतहमें नहीं कुछ उस की ज़रूरत आप के हम दीवाने हैं
निसार अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़ातिह-ए-ख़ंदक़ हुनैन-ओ-बद्र-ओ-ख़ैबर हैं 'अलीइफ़्तिख़ार-ए-मस्जिद-ओ-मेहराब-ओ-मिंबर हैं 'अली
ख़ालिद नदीम बदायूँनी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ज़ुल्फ़ आशुफ़्तः-ओ-ख़ूए-कर्दः-ओ-ख़ंदँ-लब-ओ-मस्तपैरहन चाक-ओ-ग़ज़ल-ख़्वान-ओ-सुराही दर दस्त
हाफ़िज़
बैत
बद-ओ-नेक रा बज़्ल कुन सीम-ओ-ज़र
बद-ओ-नेक रा बज़्ल कुन सीम-ओ-ज़रकि ईं कस्ब-ए-ख़ैरस्त-ओ-आँ दफ़'अ-ए-शर
सादी शीराज़ी
ग़ज़ल
बाग़-ओ-बहिश्त-ओ-हूर-ओ-जन्नत अबरारों को कीजिए इनायतहमें नहीं कुछ उस की ज़रूरत आप के हम दीवाने हैं
निसार अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
शिकवा-ओ-’इज़्ज़-ओ-शॉं तेरी मु'ईनुद्दीन अजमेरी'अयाँ है हर ज़माँ तेरी मु'ईनुद्दीन अजमेरी