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सूफ़ी कहानी
हज़रत-ए-हमज़ा का मैदान-ए-जंग में ज़िरह पहने ब-ग़ैर आना- दफ़्तर-ए-सेउम
अय्याम-ए-जवानी में हज़रत-ए-हमज़ा हमेशा जंगों में ज़िरह पहन कर शरीक होते थे लेकिन आख़िर-ए-उ’म्र में आपका
रूमी
ग़ज़ल
छुड़ा देती है फ़िक्र-ए-ग़ैर से तासीर-ए-मय-ख़ानामिली है अ’र्श की ज़ंजीर से ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना