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सूफ़ी कहावत
चुँ यार अहल अस्त, कार सहल अस्त
जब हमारे साथी क्षमता रखने वाले होते हैं तो काम आसान हो जाता है।
वाचिक परंपरा
शे'र
ऐ ग़म मुझे याँ अहल-ए-तअय्युश ने है घेराइस भीड़ में तू ऐ मिरे ग़म-ख़्वार कहाँ है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
जुब्बः-साई जिस से की क़िस्मत चमक उठी 'रियाज़'हज़रत-ए-'साहिर' के दर से क्यूँ हमारा सर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
शाह रा ख़्वाही कि बीनी ख़ाक शो दरगाह राज़े-आबरू आबी ब-ज़न दरगाह-ए-शाहंशाह रा
हकीम सनाई
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ग़ज़ल
वहीं पर जाके ठहरा अहल-ए-दिल अहल-ए-दिल का कारवाँ पहलेमोहब्बत ने किसी की ली थी अंगड़ाई जहाँ पहले
महमूद अ’ली सबा
ग़ज़ल
कहते हैं अहल मोहब्बत जिस को मे'राज-ए-बक़ानूर बन कर तेरे जल्वों में ही खो जाने का नाम
तुरफ़ा क़ुरैशी
बैत
हर किसी को अहल-ए-’आलम बीच है जा-ए-पनाह
हर किसी को अहल-ए-’आलम बीच है जा-ए-पनाहया 'अली 'अमजद' 'अली को है तुम्हारा आस्ताँ
सय्यद अमजद अ'ली शाह
ग़ज़ल
कूचा-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम में अहल-ए-दिल जाते हैं क्यूँऔर जाते हैं तो दिल सी चीज़ छोड़ आते हैं क्यूँ
आसी गाज़ीपुरी
ग़ज़ल
बस-कि ढूँडे अहल-ए-दिल मिल उन से साहब-ए-दिल हुआजब फिरा मैं बरसों तब ये आबला हासिल हुआ