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ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा ने हर किसी को इक नया अंदाज़ बख़्शा है
किसी को सोज़ बख़्शा है किसी को साज़ बख़्शा है
मुस्तफ़ा ग़ज़ाली
ना'त-ओ-मनक़बत
शाह अकबर दानापूरी
कलाम
'अजब अंदाज़ तुझ को नर्गिस-ए-मस्ताना आता है
कि हर होशियार बनने को यहाँ दीवाना आता है
बाक़ीर शाहजहांपुरी
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कलाम
हर इक 'आशिक़ नए अंदाज़ से क़ुर्बान-ए-क़ातिल था
क़तील-ए-तेग़-ए-बे-सर था शहीद-ए-नाज़-ए-बे-दिल था
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
तहज़ीब-ए-इमारत रोज़ नए अंदाज़-ए-शबिस्ताँ बदलेगी
ऐ दोस्त मगर शायद ये कभी दुनिया-ए-ग़रीबाँ बदलेगी
नीयाज़ मकनपुरी
शे'र
अदा-ओ-नाज़-ए-क़ातिल हूँ कभी अंदाज़-ए-बिस्मिल हूँ
कहीं मैं ख़ंदः-ए-गुल हूँ कहीं सोज़-ए-अनादिल हूँ
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
अदा-ओ-नाज़-ए-क़ातिल हूँ कभी अंदाज़-ए-बिस्मिल हूँ
कहीं मैं ख़ंदा-ए-गुल हूँ कहीं सोज़-ए-अ’नादिल हूँ
कौसर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल भी तो दिल-कश है तुम्हारा
झट फेर लिया मुँह को जो भूले से नज़र की
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
मुझे इस अंजुमन में बार पाकर अब ये ख़दशा है
मिरा अंदाज़-ए-बेताबी न गुस्ताख़ाना हो जाए
माहिरुल क़ादरी
ग़ज़ल
महफ़िल का ये अंदाज़ कहाँ वो हैं कहाँ मैं
दुनिया को ख़बर होगी जो खोलूँगा ज़बाँ मैं