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दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी 'तुराब' दकनी
कभी नाग़ा नहीं करती थी अक्सरचतुर सब औरत में थी बिचित्तर
शाह मियाँ तुराब दकनी
पद
जो खोदाय मस्जिद बसतु है और मुलुक कहै केरा
जेते औरत-मरद उपानी सो सब रूप तुम्हारा'कबीर' पोगड़ा अलह-राम का सो गुरू पीर हमारा
कबीर
ना'त-ओ-मनक़बत
'औरत को हया की चादर दी ग़ैरत का ग़ाज़ा भी बख़्शाशीशों में नज़ाकत पैदा की किर्दार के जौहर चमकाए