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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रफ़्ती अज़ पेश-ए-मन व नक़्श-ए-तू अज़ पेश न-रफ़्तकीस्त कू दीद ब-रुख़सार-ए-तू व ज़े-ख़्वेश न-रफ़्त
अमीर ख़ुसरौ
फ़ारसी कलाम
दिल-ए-ज़ार-ए-मरा दर ख़ाक-ओ-ख़ूँ अंदाख़्ती रफ़्तीमरा दीवान:-ओ-रुस्वा-ए-आलम साख़्ती रफ़्ती
ग़ुलाम इमाम शहीद
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शे'र
मुझ से लगे हैं इ'श्क़ की अ'ज़्मत को चार चाँदख़ुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
बैत
अ’हद-ए-रफ्ता की खुदाई किस क़दर महँगी पड़ी
अ’हद-ए-रफ्ता की खुदाई किस क़दर महँगी पड़ीजिस जगह ऊँची इ’मारत थी गढ़ा सा रह गया
मुज़फ़्फ़र वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
हुदूद-ए-अक़्ल से बाला है 'अज़्मत ग़ौस-ए-आ'ज़म कीख़ुदा ही जनता है शान-ए-रिफ़’अत ग़ौस-ए-आज़म की
सलमान आरीफ़ बरेलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
थी बहुत 'अज़्मत बड़ी हज़रत 'उम्र फ़ारूक़ कीशान और हैबत बड़ी हज़रत 'उम्र फ़ारूक़ की
हादी क़ादरी
फ़ारसी कलाम
दीशब कि मी-रफ़्ती अ'याँ रू कर्द: अज़ मा यक तरफ़अफ़्गंद: काकुल यक तरफ़ ज़ुल्फ़-ए-चलीपा यक तरफ़
अमीर ख़ुसरौ
राग आधारित पद
होली-पीलू- देखो देखो री होरी को खिलैया।
देखो देखो री होरी को खिलैया।निपट निलाज लाज नहि दैया।।
अज़मत
ना'त-ओ-मनक़बत
'अली के नाम की 'अज़्मत सिफ़ात-ए-इस्म-ए-आ’ज़म है'अली ही 'इल्म की तौक़ीर का हुस्न-ए-मुजस्सम है