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कलाम
ख़ादिम हसन अजमेरी
सूफ़ी शब्दावली
सूफ़ी उद्धरण
काइनात का कोई ग़म ऐसा नहीं है जो आदमी बर्दाश्त न कर सके।
काइनात का कोई ग़म ऐसा नहीं है जो आदमी बर्दाश्त न कर सके।
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
चाटती है क्यूँ ज़बान-ए-तेग़-ए-क़ातिल बार बारबे-नमक छिड़के ये ज़ख़्मों में मज़ा क्यूँकर हुआ