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ग़ज़ल
कामता प्रशाद होश
ग़ज़ल
याद रह जाती है बे-मेहरी-ए-अहबाब 'ख़लिश'दिन मुसीबत के गुज़रने को गुज़र जाते हैं
जगेशवर प्रसाद ख़लिश
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ना'त-ओ-मनक़बत
शाहिद-ए-हक़ आ’रिफ़-ए-फ़ख़्र-ए-ज़मन की बज़्म हैहोशियार ऐ नुत्क़ ये 'ख़्वाजा-हसन' की बज़्म है
अज़ीज़ वारसी देहलवी
ग़ज़ल
मिल के वो खिचता है और ये खिच के मिलता है 'ख़लिश'बड़ के क़ातिल से ये ख़ूबी ख़ंजर-ए-क़ातिल में है
जगेशवर प्रसाद ख़लिश
ग़ज़ल
मर-मर के 'ख़लिश' हो ख़ाक बसर और बा'द-ए-फ़ना तुम लो न ख़बरजो हसरत है ये हसरत है जो रोना है ये रोना है
जगेशवर प्रसाद ख़लिश
कलाम
न होगी रज़्म अगर तो बज़्म वज्ह-ए-बरहमी होगीकिसी सूरत से हो दुनिया तो इक दिन ख़त्म ही होगी
सीमाब अकबराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आँ सुख़न गुफ़्तन-ए-तू हस्त हुनूज़म दर गोशवाँ शकर-ख़ंदःए शीरीन-ए-तू अज़ चश्म:-ए-नोश
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
पस-ए-पर्दा तुझे हर बज़्म में शामिल समझते हैंकोई महफ़िल हो हम उस को तिरी महफ़िल समझते हैं