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नाम यूँ आ'शिक़-ए-सादिक़ तिरे कर जाते हैं

जगेशवर प्रसाद ख़लिश

नाम यूँ आ'शिक़-ए-सादिक़ तिरे कर जाते हैं

जगेशवर प्रसाद ख़लिश

MORE BYजगेशवर प्रसाद ख़लिश

    नाम यूँ आ'शिक़-ए-सादिक़ तिरे कर जाते हैं

    मौत आने नहीं पाती है कि मर जाते हैं

    मेरी तक़दीर से अच्छे हैं तुम्हारे गेसू

    जब बिगड़ते हैं सँवारे से सँवर जाते हैं

    रात भर रो-रो के हम को भी रुलाती है अ'बस

    हम से जलती है तो शम्अ'-ए-सहर जाते हैं

    अभी कम-सिन हैं वो सुन कर मिरे नाले शब-ए-हिज्र

    सहम जाते हैं झिझक जाते हैं डर जाते हैं

    ये कहाँ ताब कि देखें रुख़-ए-रौशन तेरा

    मरने वाले तरे अंदाज़ पे मर जाते हैं

    अल-मदद जज़्बा-ए-दिल कशिश इ'श्क़-ए-मदद

    मुझ से फिर रूठ कै वो ग़ैर कै घर जाते हैं

    उठ के का'बा से तो हम आए हैं बुत-ख़ाने को

    देखें अब बुत जो उठाते हैं किधर जाते हैं

    याद रह जाती है बे-मेहरी-ए-अहबाब 'ख़लिश'

    दिन मुसीबत के गुज़रने को गुज़र जाते हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़्किरा-ए-हिंदू शो’रा-ए-बिहार (पृष्ठ 132)
    • रचनाकार : मोहम्मद फ़सीहुद्दीन बल्ख़ी
    • प्रकाशन : नेशनल बुक सेंटर डालटेनगंज, पलामू (1961)

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