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ग़ज़ल
जल्वः-आरा कौन बे-पर्दः ये पर्दः-पोश हैज़र्रः ज़र्रः बज़्म-ए-हस्ती का जो अब मदहोश है
हैरत शाह वारसी
फ़ारसी कलाम
दर-पर्दः अ'यानस्ती व बे-पर्दः निहानीहम नाम-ओ-निशाँ दारी व बे-नाम-ओ-निशानी
मुज़फ़्फ़र अली शाह
फ़ारसी कलाम
आ'शिक़-ए-दीवानः अम अज़ दर्द-ओ-दरमानम म-पुर्सबंद:-ए-जानान: अम अज़ कुफ़्र-ओ-ईमानम म-पुर्स
अहमद शाहजहाँपुरी
फ़ारसी कलाम
मन ज़े-सौदा-ए-मोहब्बत वालिह-ओ-दीवान: अमआ'शिक़-ए-शोरीदः-सर मह्व-ए-रुख़-ए-जानान: अम
अहमद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
अगर धोके से बे-पर्दा वो पर्दा-दार हो जाएतो फिर दुनिया में दीवाना हर इक हुश्यार हो जाए
मुज़म्मिल ख़ान
फ़ारसी कलाम
खस्त:-ए-हिज्र गश्त:-अम बा तू विसालम आरज़ूस्ततीरः शुदः अस्त चश्म-ए-मन नूर-ए-जमालम आरज़ूस्त
हुसैन बिन मंसूर हल्लाज
ग़ज़ल
हुस्न-ए-बे-पर्दः को ख़ुद-बीन व ख़ुद-आरा कर दियाक्या किया मैं ने कि इज़्हार-ए-तमन्ना कर दिया
हसरत मोहानी
फ़ारसी कलाम
गुफ़्त मन बे-पर्द:-अम गर पर्द: बीनी आँ तुईता तू हस्ती दर हज़ाराँ पर्द: पिन्हानी ज़े मा
अज्ञात
सूफ़ी प्रतीक
अनल-हक़
अनल-हक़ (मैं ख़ुदा हूँ) का ना’रा मन्सूर हल्लाज ने दिया था उन्हें हल्लाज भी कहा जाता
अज्ञात
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
माह-ए-मन दर पर्दः दारद ज़ुल्फ़-ए-मुश्क अफ़्शाँ हनूज़बर ने-फ़िगंदस्त पर्द: अज़ रुख़-ए-रख़्शाँ हनूज़