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ग़ज़ल
कैफ़-ओ-कम को देख उसे बे-कैफ़-ओ-कम कहने लगेजब हुदूस अपना खुला राज़-ए-क़िदम कहने लगे
ख़्वाजा मीर दर्द
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गुल दर बर व मय दर कफ़ व मा'शूक़ः ब-कामस्तसुल्तान-ए-जहानम ब-चुनींं रोज़-ए-ग़ुलामस्त
हाफ़िज़
फ़ारसी कलाम
बे-चूँ-ओ-हेच-गूनम 'अनक़ा-ए-क़ाफ़ क़ुद्समबे-शुब्हः-ओ-बे-नमूनम 'अनक़ा-ए-क़ाफ़ क़ुद्सम
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अगर बर-ख़ेज़द अज़ दस्तम कि बा दिलदार ब-नशीनमज़े जाम-ए-वस्ल मय नोशम ज़े बाग़-ए-खु़ल्द गुल चीनम
हाफ़िज़
फ़ारसी कलाम
खस्त:-ए-हिज्र गश्त:-अम बा तू विसालम आरज़ूस्ततीरः शुदः अस्त चश्म-ए-मन नूर-ए-जमालम आरज़ूस्त
हुसैन बिन मंसूर हल्लाज
फ़ारसी कलाम
मी-कुनद बा मन दिलम हर-लहज़: इज़हारे दिगरअज़ दरूनम मी-ज़नद सिर्र हर-दम असरारे दिगर
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
सूफ़ी उद्धरण
आपकी क़ियामत उस दिन आजाएगी जिस दिन आप नहीं होंगे।
आपकी क़ियामत उस दिन आजाएगी जिस दिन आप नहीं होंगे।