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शे'र
लज़्ज़तें दीं ग़ाफ़िलों को क़ासिम-ए-हुशियार नेइ’श्क़ की क़िस्मत हुई दुनिया में ग़म खाने की तरह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
लज़्ज़तें दीं ग़ाफ़िलों को क़ासिम-ए-हुशियार नेइ’श्क़ की क़िस्मत हुई दुनिया में ग़म खाने की तरह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
अज़ल से मुर्ग़-ए-दिल को ख़तरःए-सय्याद क्या होताकि उस को तो असीर-ए-हल्क़ः-ए-फ़ित्राक होना था
अर्श गयावी
कलाम
दिल काले तों मुँह काला चंगा जे कोई उस नूँ जाणे हूमुँह काला दिल अच्छा होवे ताँ दिल यार पछाणे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
करे क्या फ़ाएदा नाचीज़ को तक़लीद अच्छों कीकि जम जाने से कुछ ओला तो गौहर हो नहीं सकता
ख़्वाजा मीर दर्द
पद
काहे को 'दिलदार' फिरे है घर घर तू दिन राता
काहे को 'दिलदार' फिरे है घर घर तू दिन रातासिवा ख़ुदा राज़िक़ के हाजत ग़ैर से क्यूँ है लाता
कवि दिलदार
कलाम
सो मैं अब मजनूँ वार बही प्रदेश बिदेस ख़्वार बहीइस पी अपने की यार बही अब मेरा भी ए'तिबार होया
वारिस शाह
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आशिक़-ए-दीन-दार बायद ता कि दर्द-ए-दीं कशदसुर्मः-ए-तस्लीम रा दर चश्म-ए-रौशन-बीं कशद