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ग़ज़ल
जो याँ कुछ चाहने वाले क़रीब-ए-यक-दिगर बैठेहम अपना दिल बग़ल में दाब लेकर आह कर बैठे
ख़्वाजा मीर दर्द
शे'र
हमारे दिल को बहर-ए-ग़म की क्या ताक़त जो ले बैठेवो कश्ती डूब कब सकती है जिस के नाख़ुदा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
तिरे कूचे में क्यूँ बैठे फ़क़त इस वास्ते बैठेकि जब उट्ठेंगे इस दुनिया से जन्नत ले के उट्ठेंगे
मुज़्तर ख़ैराबादी
कलाम
वो बना रहे हैं बे-ख़ुद मुझे सामने बिठा केकभी जाम से पिला के कभी आँख से पिला के
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
मुफ़्लिस-ए-वक़्त को सुल्तान किए बैठे हैंसारे आ'लम पे वो एहसान किए बैठे हैं
महबूब गौहर इस्लामपुरी
पद
मद्ध अकास आप जहँ बैठे जोत शब्द उजियारा हो
मद्ध अकास आप जहँ बैठे जोत शब्द उजियारा होसेत सरूप राग जहँ फूलै साँईँ करत बिहारा हो
कबीर
ग़ज़ल
न पूछो कौन हैं क्यूँ राह में नाचार बैठे हैंमुसाफ़िर हैं सफ़र करने की हिम्मत हार बैठे हैं