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शबद
होरी खेलेंगे सन्त खिलारी समझ घर चंचल नारी
होरी खेलेंगे सन्त खिलारी समझ घर चंचल नारीअब कुम्बे में सोच पड़ी है फ़ौज घिरी है सारी
घीसा साहेब
पद
आत्म-निवेदन- नरहरि चंचल है मति मेरी कैसे भगति करूँ मैं तेरी
नरहरि चंचल है मति मेरी कैसे भगति करूँ मैं तेरीनरहरि चंचल है मति मेरी कैसे भगति करूँ मैं तेरी
रैदास
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पद
कैसी मोहन बंसी वजाई
बिंदराबन ब्रजराज बजावत बंसी नंददुलारेसे सुनके भई बावरी चंचल मन कछु सूजत नाहीं
देवनाथ महाराज
दोहा
इंद्रियों का बर्णन - इन्द्री रोके ते रुकैं और जतन नहिं कोय
इन्द्री रोके ते रुकैं और जतन नहिं कोयमन चंचल रिझवार है रसिक सवादी होय
चरनदास जी
क़िस्सा
पेम कहानी
गउ चरावत फिरत है नित उठ जमुना तीरनिस दुख छन-छन देत है चंचल निपट अहीर
दोस्त मोहम्मद अबुलउलाई
शबद
बनती और प्रार्थना का अंग - दीनानाथ अनाथ ये कछु पार न पावै
ये मन चंचल चोर है निस बासर घावैकाम क्रोध में मिलि रहियो ई है मन भावै
गुलाल साहब
राग आधारित पद
राग सोरठ तिताला - होली चलौ देखौ री चित चोर
नंद महर कौ ढीठ साँवरौ हम सौं भयौ कठोरमन व्याकुल बिन दरस स्याम के चंचल चितवन जोर
तानसेन
कृष्ण भक्ति संत काव्य
बाँकी सज-धज ठाठ अनोखे चंचल चाल प्यारी बतियाँसाँवली सूरत में रसीले तिरछी चितवन झल-बल न्यारी
औघट शाह वारसी
कलाम
जिगर में छा गई पहलू में पहुँची दिल में जा उतरिग़ज़ब की चुलबुली चंचल निगाह-ए-यार कैसी है
क़ातिल अजमेरी
पद
अपनी कठिनाईयाँ - भोग वासना मन में धरी मोसे सतसंग किया न जाय
चित चंचल मेरा चहूँ दिस धावे सुरत शब्द में नहीं समायनिरभय होय भरमे संसारा नई कामना नित जगाय