पेम कहानी
रोचक तथ्य
آخری کے تین اشعار تذکرہ شعرائے مراٹھواڑہ سے لیا گیا ہے۔
पेम कहानी कहत हूँ सुनो सखी तुम आए
पी ढूँढ़न कूँ हौं गई आई आप गँवाए
पेम कहानी बिख भरी मत सुनियो कोऊ आए
बातन-बातन बिख झरे देखत ही घर जाए
पेम गली अति साँकरी पी बिन कुछ न समाए
तन-मन छोड़ जब आए तो पीह पाया जाए
पेमनगर मूँ आए के सुध-बुध से रहे कौन
सुध-बुध यूँ घुल जात है जूँ पानी मैं नून
पेम-नगर में आए के जिवरा निकसा जाए
अरी सखी कुछ पीह की बात कहो टुक आए
पेम कहानी कठिन है कहे कौन उठ आए
बात कही जिव लेत है मुख पकड़त ही धाए
मू सिर दुख मू सूँ परयूँ जू मैं नाँह तू नाँह
साईं मोह उठाए ले जो मोह नाहीं नाँह
भला हुआ हर बिसरी सिर की गई बलाए
जैसी थी तैसी भई अब कुछ कही न जाए
जो दुखरा मोह सिर परयो सो काहू की नाँह
कभू पिलावे पेम रस कभू कि बिख छुर माँह
अकथ कथा है पेम की कहे बनत कुछ नाँह
जा तन लागे नेहरा सो बूझी मन माँह
चातुर चाहन राग गुन मूरख इत तरसाँह
भोगी माँगे चोपड़ी रूखी रूखा खाँह
पाती आइ पीह की छाती उमगी जाए
माला टूटी अंग मूँ चोली तन न समाए
आग लगो वा देस रे बीज परो ते ठाँव
जहाँ न चर्चा नेह का लेह न पीह का नाऊँ
लाज भाज मू सूँ गई जा दिन लागो नेह
बौरी हूँ दौरी फिरूँ सर मू डारीं खेह
तन-मन मूँ खल-बल पड़ी चुभी बिरह की फाँस
हाड़ माँस दोऊ गले धाय चले है साँस
ऐ मन-चले बावरे यूँ पूछत हूँ तोह
किन बिरहन ऐसो कियो किन खोवयो मोह
ऐ बै-रागी जीवरे कहा लगौ तोहे आए
रेन-दिना बेकल रही अपना माँस तू खाए
नाहर पीह कू नेहरा मन मूँ बैठा आए
बाहर भीतर पियो बिन जो पावे सू खाए
जोर करत है नेहरा सखी कहो कित जाउँ
नाँव न जानूँ गाँव का जहाँ सजन कू ठाउँ
ना जानूँ ये जीवरा का सुन लाग्यो जाए
मोहन टुक आवत नहीं रही हूँ हाहा खाए
सुन री नेही बावरी काची-पाकी छोड़
वा कूँ कैसे पाइए जासूँ चले न जोर
ले क्यूँ जाऊँ मटकिया सारी मारग रुकवाए
तनिक लाज नहीं बाभनवा री गउ-रस लेत छिनाए
ले क्यूँ जाऊँ गगरिया भारी मोहन पकरत बाँह
दही दूध सब लेय के खेंचत है बन माँह
छतियाँ आएँ उमग के अंगिया छोटी जाए
मन मेरो ऐसन कहे जो मोहन निकसे आए
सूती थी सुख-चैन सूँ घर मूँ पाँव पसार
मोहन मोह जगाए के फेरत दुअरा द्वार
जियूँ सूरज मुख जात है घर-बाहर की छाँह
त्यूँ मेरी सुध जात है ये मुख देखी माँह
जोर करत है नेहरा बूझ परत कुछ नाँह
ना जानूँ मैं ऐ सखी कीह धरत मन माँह
बिरह बीच मोह सर पर यू तन-मन जल भयो खेह
हौं बावरी क्या जानती याको कहत हैं नेह
साँस लेईं नहीं देत है छिन-छिन बिरहा आए
अब उन बिन हौं ना रहियों जिवरा निकसा जाए
सुध-बुध ता दिन सूँ गई जा दिन देखी नाँह
चोली दरकी अंग मूँ जब गह पकड़ी बाँह
सुध-बुध तन-मन मूँ गई नैनन सूँ गई लाज
हाथ धोए पाछे परियो माई मोहन आज
बथेरीं अलकीं गूँध के नैनन काजल देह
तन-मन दूर बुहार के साजन सूँ सुख लेह
माँग सँवारी नेह सूँ कंघी कर गूँधे बाल
गहना पहरी अंग भर कपड़े पहने लाल
पायल बाजें बात मूँ और घुँगरू झंकाँह
लिए दुई दुख हम सर परी प्यू बिन कैसी जान्ह
गउ चरावत फिरत है नित उठ जमुना तीर
निस दुख छन-छन देत है चंचल निपट अहीर
रेन-दिना देखत रहीं तो-ऊ दींथ न चैन
नैन टुक न अघात हैं जूँ भूकी बे-चैन
बिरहाए सूँ ऐ सखी निपट कठिन बनि आए
देखे तन-मन ना भरे जिन देखिए जियो जाए
लाखन अँखियाँ पाउँ जू देखूँ सब से पी
देखत-देखत मर मिटूँ तोऊ भरे ना जी
रेन-दिना घेरे रहीं इक छन देत न चैन
या मोहन की हाथ सूँ परो मोह जी दैन
नैन आए नाथ में माथे तेवरी लाए
मूँ को कुछ सुद्ध नाँह है चूक कहा परी आए
धर-धर हियरा करत है सर-सर जिवरा जाए
धर-धर सूँ दुख सर परी बिरहन की सर आए
धर-धर हियरा करत है धीर नहीं कोऊ देत
नेह सजन का पीठ मन मार मार जीह लेत
पेम लाज सब उठ गई सुनत बिरह के बैन
पीतम की दरसन बिना थर-थर करीं दोऊ नैन
घर-बाहर भर नेहरा मो को रहो न ठावँ
तन-मन में मोहन बसे रह गयो मेरा नाँव
आज न देखा लाल कूँ हाल हमारा और
चुभी बिरह की भाल दुख के दौरा दौर
ऐ री सखी बाँगर मूँ मन मेरो लियो मोह
मोहन है या डगर मूँ नहीं कहत रहीं तोह
मन मेरो लियो मोह सीं फिर घूरत है मोह
अरे अरे मोहन बावरे कछु लाज है तोह
पीत की रीत कोउ रीत है मत मर्दउ लो नाँव
भूले से मत जाव रे काँटे हैं तह ठावँ
जूली निकसत रंग सूँ अंगियाँ छूई जाए
मन बैरागी वा से कह मोहन निकसै आए
गाए पैम कहानी बस बहरे मत सुनो कोई आए
बातों बातों बिस झड़े देखत है गौहर जाए
पेम गली अति साँकरी पी बिन कुछ न समाए
तन-मन छोड़ जब आए तो पीह पाया जाए
- पुस्तक : नजात-ए-क़ासिम (पृष्ठ 192)
- रचनाकार : शाह क़ासिम दानापूरी
- प्रकाशन : अशरफ़ुल अख़बार, अगरा (1857)
- संस्करण : First
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.