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ग़ज़ल
अगर आँ चश्म-ए-मस्त उस की मरा कर ले असीर आख़िरमैं वारूँ ’अर्श-ओ-अफ़्लाक-ओ-ज़मीन-ओ-काइनात आख़िर
आकिफ़ हुसैन शाहवली
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
चू चश्म-ए-मस्त-ए-तू दर ख़्वाब-गाह-ए-नाज़ ब-ख़ुफ़्तबा आसतानत मुरा सख़्त हीला-साज़ ब-ख़ुफ़्त
अमीर ख़ुसरौ
फ़ारसी कलाम
या-रब ईं चश्म-ए-मनस्त या जादू-अस्त कज़ कैफ़ियतशहम-चू दरिया-ए-मुहीत ईं क़त्रः-अम आमद ब-जोश
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ग़ज़ल
ऐ दोस्तो चश्म को खोल ज़रा देखो कैसा है माह-ए-लक़ाबे-शक है मोहम्मद नूर-ए-ख़ुदा शुबहा न कर इस में असला
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
फ़ारसी कलाम
दिल-बर-ए-मस्तान: रा चश्म ब-रु-ए-कि बूदबाद: ज़े दस्त-ए-कि ख़ुर्द मस्त ब-बू-ए-कि बूद
अहमद जाम
फ़ारसी कलाम
ग़ैरत अज़ चश्म बरम रु-ए-तू दीदन न-देहमगोश रा नीज़ हदीस-ए-तू शुनीदन न-देहम
बू अली शाह क़लन्दर
फ़ारसी कलाम
हाशा लिल्लाह कज़ रुख़त चश्म अफ़्गनम सू-ए-दिगरख़ुश नमी-आयद ब-जुज़ रू-ए-तूअम रू-ए-दिगर
नूरुद्दीन हिलाली
कलाम
चश्म में ख़ल्क़ की गो मिस्ल-ए-हबाब आता हूँऐ'न-ए-दरिया हूँ हक़ीक़त में बहा जाता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
चश्म नर्गिस बन गई है इश्तियाक़-ए-दीद मेंकौन कहता है कि गुलशन में तिरा चर्चा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तुर्क-ए-सफ़ेद-रूए- व सियह-चश्म-ओ-लालः-रंगमिस्लत नज़ाद मादर-ए-अय्याम शोख़-ओ-शंग