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ग़ज़ल
ऐ दोस्तो चश्म को खोल ज़रा देखो कैसा है माह-ए-लक़ाबे-शक है मोहम्मद नूर-ए-ख़ुदा शुबहा न कर इस में असला
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
राग आधारित पद
कल्याण-मत- मैं गवने नहिं जैहौ राम।
मैं गवने नहिं जैहौ राम।सासुर मैं जो कहो भल होइये लाज संग शरमाई हूँ राम।।
क़ाज़िम वा क़ायम
राग आधारित पद
भैरवी यत- कजरवा देके हम पछतानी।
कजरवा देके हम पछतानी।पिय बिन कौन सिंगार कजरा की जब हम मीचई वानी।।
क़ाज़िम वा क़ायम
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राग आधारित पद
दादर भूपाली- ए नये विषन भरे उर बेधत करेजो बेन
ए नये विषन भरे उर बेधत करेजो बेननहीं रन दिन इतलाल सतावे
क़ाज़िम वा क़ायम
फ़ारसी कलाम
दिल-बर-ए-मस्तान: रा चश्म ब-रु-ए-कि बूदबाद: ज़े दस्त-ए-कि ख़ुर्द मस्त ब-बू-ए-कि बूद
अहमद जाम
राग आधारित पद
कल्याण-मत- गुइयाँ वर जोरी कुच गहे मुख मीड़े फिर फिर आवत मोरी छुइया।
गुइयाँ वर जोरी कुच गहे मुख मीड़े फिर फिर आवत मोरी छइया।काजम अपनी ओर निवारो बरबस झगरा ठइयां।।
क़ाज़िम वा क़ायम
फ़ारसी कलाम
ग़ैरत अज़ चश्म बरम रु-ए-तू दीदन न-देहमगोश रा नीज़ हदीस-ए-तू शुनीदन न-देहम
बू अली शाह क़लन्दर
फ़ारसी कलाम
हाशा लिल्लाह कज़ रुख़त चश्म अफ़्गनम सू-ए-दिगरख़ुश नमी-आयद ब-जुज़ रू-ए-तूअम रू-ए-दिगर
नूरुद्दीन हिलाली
कलाम
चश्म में ख़ल्क़ की गो मिस्ल-ए-हबाब आता हूँऐ'न-ए-दरिया हूँ हक़ीक़त में बहा जाता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
चश्म नर्गिस बन गई है इश्तियाक़-ए-दीद मेंकौन कहता है कि गुलशन में तिरा चर्चा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तुर्क-ए-सफ़ेद-रूए- व सियह-चश्म-ओ-लालः-रंगमिस्लत नज़ाद मादर-ए-अय्याम शोख़-ओ-शंग