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सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
क़व्वाली शब्द अरबी भाषा के शब्द ‘क़ौल’ से लिया गया है। क़ौल पढ़ने वाले व्यक्ति को
रय्यान अबुलउलाई
शबद
अब चली पिया के देश मगन भई मद माती
अब चली पिया के देश मगन भई मद मातीपिया तुम बिन बहुत ख़्वार भरम में बह जाती
घीसा साहेब
शबद
ऐसा देश हमारा है जहाँ कोई मरता नहीं
ऐसा देश हमारा है जहाँ कोई मरता नहींवहाँ रंग तमाशे हैं शौक़ कोई करता नहीं
ईष्वरदास
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शबद
सखी री तुम चलो दिवाने देश लाल वर पूरा बरियो री
सखी री तुम चलो दिवाने देश लाल वर पूरा बरियो रीसखी री तुम कुटुम्ब परिवार समझ के मोह मत करियो री
धोतरम दास
शबद
सुन सुरता प्यारी पिया देश में जाओ री
सुन सुरता प्यारी पिया देश में जाओ रीज्ञान की सीढी टग-टग चढ जा गगन मडल घर छाओ री
धोतरम दास
ग़ज़ल
नहीं मुश्ताक़ आईना के जो वो साफ़ तीनत हैंसफ़ा तो आ’रज़ी है और कुदूरत उस की ज़ाती है
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
तुम कैसे जहाँ भर के ख़ज़ानों पे हो क़ाबिज़हम से तो ये ग़ुर्बत भी सँभाली नहीं जाती
ख़्वाजा शायान हसन
पद
स्वानुभूति महत्व - बिनु देश उपजै नहीं आसा जो दीसै सो होइ बिनासा
बिनु देश उपजै नहीं आसा जो दीसै सो होइ बिनासाबरन सहित जो जापै नामु सो जोगी केवल निहकामु
रैदास
ग़ज़ल
उस मस्त-नज़र का उफ़ रे सितम जिस वक़्त इधर हो जाती हैमजरूह जिगर हो जाता है बेताब नज़र हो जाती है
अज़ीज़ वारसी देहलवी
राग आधारित पद
स्वर स्थान - षरज कंठ स्थान है रिषभ सीस तैं जान
षरज कंठ स्थान है रिषभ सीस तैं जाननासिका तैं गंधार है मध्यम उर तैं मान