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शे'र
माहिरुल क़ादरी
गीत
शकील बदायूँनी
ग़ज़ल
फ़ुज़ूँ होता है या कम-इज़्तिराब-ए-दिल ख़ुदा जानेनिगाहें हाल पर रहती हैं मुस्तक़बिल ख़ुदा जाने
ग़ुबार भट्टी
ग़ज़ल
साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या हैज़हर पी लूँगा तिरे हाथ से सहबा क्या है
फ़ना निज़ामी कानपुरी
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विषय
दिल
दिल
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सूफ़ी कहावत
आवाज़-ए-सगां कम नकुनद रिज़्क-ए-गदा रा
कुत्तों की भौंकने से भिखारी के हिस्से (रोज़ी रोटी) में कोई कमी नहीं होती।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
मदीने वाले आक़ा ये तो हसरत कम से कम निकलेतुम्हारा रू-ए-अनवर देख कर आँखों का दम निकले
बह्ज़ाद लखनवी
सूफ़ी कहावत
तारुफ़ कम कुन-ओ-बर मब्लग़ अफ़जाय
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