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शे'र
अंधेरा क़ब्र का देखा तो फिर याद आ गए गेसूमैं समझा था कि अब मैं तेरे काकुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
परेशाँ किस लिए हैं चाँद से रुख़्सार पर गेसूहटा लीजे कि धुँदली चाँदनी अच्छी नहीं लगती
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
चले हैं गेसू सँवार कर वो कहीं क़यामत बपा करेंगेकिसी हमारे से बे-ख़ता को असीर ज़ुल्फ़-ए-दोता करेंगे
औघट शाह वारसी
कलाम
वस्ल है पर दिल में अब तक ज़ौक़-ए-ग़म पेचीदा हैबुलबुला है ऐ'न दरिया में मगर नम-दीदा है
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
हम ने माना दाम-ए-गेसू में नहीं 'आसी' असीरबाग़ में नज़्ज़ारा-ए-सुम्बुल से घबराते हैं क्यूँ
आसी गाज़ीपुरी
ग़ज़ल
वज्द के आ'लम में हर ज़र्रे को रक़्साँ देखिएकिस ने छेड़ा साज़-ए-दिल पुर-नग़मा-ए-जाँ देखिए