मुबारक रहमत-ए-’आलम के हम दरबार में आए
मुबारक रहमत-ए-’आलम के हम दरबार में आए
बिके थे नाम पर जिस के उसी सरकार में आए
दिल-ए-शैदा वो फूला है नहीं जामे समाता है
ख़ुशी ये है कि कोई अहमद-ए-मुख़्तार में आए
करें नग़्मे न क्यूँ हम बुलबुलों से ना'त-ए-अहमद में
कि किस अरमाँ से उस फ़िरदौस के गुलज़ार में आए
गुनह-गारो बढ़ो और सदक़े हो कर झोलियाँ भर लो
कि हम क़िस्मत से अपनी उस सख़ी सरकार में आए
मुरादें आज मुँह माँगी मिलेंगी शाह-ए-’आलम से
बड़ी सरकार में आए बड़े दरबार में आए
उठाना रुख़ से पर्दा या नबी अब जल्वा दिखलाना
कि दीद-ए-हक़ की लज़्ज़त आप के दीदार में आए
अदब है रुक गया जब मैं तो दी आवाज़ हज़रत ने
कहाँ है ‘ग़ौसी’-ए-ख़स्ता कहो दरबार में आए
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