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ना'त-ओ-मनक़बत
शाह तक़िउद्दिन मनेरी
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कलाम
बह्ज़ाद लखनवी
शे'र
बुलबुल सिफ़त ऐ गुल-बदन इस बाग़ में हर सुब्हतेरी बहारिस्तान का दीवाना हूँ दीवाना हूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में थाअब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
शे'र
सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाल: फूलों का
शाह नसीर
शे'र
सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाला फूलों का
शाह नसीर
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सुब्ह-दम मुर्ग़-ए-चमन बा-गुल-ए-नौ-ख़ास्तः गुफ़्तनाज़ कम कुन कि दर ईं बाग़ बसे चूँ तू शगुफ़्त
हाफ़िज़
सूफ़ी शब्दावली
ग़ज़ल
चमन में सुब्ह ये कहती थी हो कर चश्म-ए-तर शबनमबहार-ए-बाग़ गो यूँ ही रही लेकिन किधर शबनम
ख़्वाजा मीर दर्द
ना'त-ओ-मनक़बत
मदीने की ज़मीं पर सुब्ह का 'आलम पसंद आयासुकूत-ए-सब्ज़ा-ओ-गुल गिर्या-ए-शबनम पसंद आया
अबुल वफ़ा फ़सिही
कलाम
है दर्द मुझे ये सुब्ह-ओ-मसा सनमा सनमा सनमा सनमावो रू-ए-मुनव्वर अपना दिखा सनमा सनमा सनमा सनमा