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पद
प्रकीर्ण के पद - भोला-नाथ दिगंबर ये दुख मेरा हरो रे
भोला-नाथ दिगंबर ये दुख मेरा हरो रेशीतल चंदन बेल पतरवा मस्तक गंगा धरो रे
मीराबाई
राग आधारित पद
राग काफ़ी- हरि हरि जपलेनी औसर बीते जाय
हरि हरि जपलेनी औसर बीते जायजो दिन गये सो फिर नहिं आवें
सहजो बाई
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विशेष
होरी
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होरी
मैं तो खेलों-गी प्रभू-जी से होरी
मैं तो खेलों-गी प्रभू-जी से होरीमैं तो खेलों-गी प्रभू-जी से होरी
गुलाल साहब
शबद
होरी खेलेंगे सन्त खिलारी समझ घर चंचल नारी
होरी खेलेंगे सन्त खिलारी समझ घर चंचल नारीअब कुम्बे में सोच पड़ी है फ़ौज घिरी है सारी
घीसा साहेब
पद
सत संगत से पार परो भवमद सबहि झरो
निरमल गावौ मुख से नामा अभिमति भान हरोसहज पनो मो समतानंतीं सदचिद प्रेम झरो
अनंत महाराज
काफी
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाहनाम नबी की रतन चढ़ी बूँद पड़ी अल्लाह अल्लाह
बुल्ले शाह
शबद
बिरह और प्रेम का अंग - माई म्हाँरी हरि न बूझी बात
माई म्हाँरी हरि न बूझी बातपिंड में से प्राण पापी निकस क्यूँ नहिं जात
मीराबाई
दोहा
हरि करिपा जो होय तो नाहिं होय तो नाहिं
हरि करिपा जो होय तो नाहिं होय तो नाहिंपै गुरु किरपा दया बिनु सकल बुद्धि बहि जाहिं
सहजो बाई
ना'त-ओ-मनक़बत
हरे झंडे के शहज़ादे जी मेरे पीर दस्तगीरहरे झंडे के शहज़ादे जी मेरे पीर दस्तगीर
वक़ारुद्दीन क़ादरी
पद
विरह के पद - माई म्हारी हरि जी न बूझी बात
माई म्हारी हरि जी न बूझी बातपिंड माँसूँ प्राण पापी निकस क्यूँ नहीं जात