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कलाम
दास्ताँ इ'श्क़-ओ-मोहब्बत की किताबों में नहींजो नश्शा आँख में तेरी है शराबों में नहीं
अब्दुल हादी काविश
ग़ज़ल
लबरेज़ है आतिश से पैमाना मोहब्बत काकौन इस को पिए साक़ी दीवाना मोहब्बत का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
आतिश से मियाँ गर्म है बाज़ार-ए-मोहब्बतजलते हैं तअस्सुफ़ से ख़रीदार-ए-मोहब्बत
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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विषय
आ’शिक़
आशिक़
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ग़ज़ल
मिटती नहीं है इ’श्क़-ओ-मोहब्बत की दास्ताँसब की ज़बाँ पे क़िस्सा-ए-फ़रहाद रह गया
तुफ़ैल अहमद मिसबाही
ग़ज़ल
राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचेबात बढ़ कर ये ख़ुदा जाने कहाँ तक पहुँचे
हफ़ीज़ होश्यारपुरी
शे'र
मोहब्बत के एवज़ रहने लगे हर-दम ख़फ़ा मुझ सेकहो तो ऐसी क्या सरज़द हुई आख़िर ख़ता मुझ से
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
मोहब्बत के एवज़ रहने लगे हर-दम ख़फ़ा मुझ सेकहो तो ऐसी क्या सरज़द हुई आख़िर ख़ता मुझ से
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
चमन-ए-मोहब्बत-ओ-इश्क़ में कई साल ख़ूब फ़ज़ा रहीमगर उस ने आँख जो फेर ली न गुल रहे न हवा रही
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मोहब्बत की नज़र करती है इक्सीर-ए-नज़र पैदामोहब्बत हो तो हो जाते हैं दिल पैदा जिगर पैदा