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ना'त-ओ-मनक़बत
है फ़ैज़ आप का फ़ैज़-ए-अतम ग़रीब-नवाज़करम है आप का रब्ब-ए-करम ग़रीब-नवाज़
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
कलाम
आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुएरह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ना'त-ओ-मनक़बत
क्या फ़ैज़ फ़ैज़-ए-'आम है दाता हुज़ूर काचश्मा उबल रहा है मोहम्मद के नूर का
अमीर बख़्श साबरी
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नज़्म
एक रह-गुज़र पर
वो होंट फ़ैज़ से जिन के बहार लाला-फ़रोशबहिश्त ओ कौसर ओ तसनीम ओ सलसबील ब-दोश
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
दिल ओ जाँ फ़िदा-ए-राहे कभी आ के देख हमदमसर-ए-कू-ए-दिल-फ़िगाराँ शब-ए-आरज़ू का आलम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
बैत
मुर्शिद के फ़ैज़ से तिरा नाम-ओ-वक़ार है
मुर्शिद के फ़ैज़ से तिरा नाम-ओ-वक़ार हैतुझ से को वर्ना कोई कभी पूछता न था
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
कलाम
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ानाकब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मौज़ू-ए-सुख़न
आज तक सुर्ख़ ओ सियह सदियों के साए के तलेआदम ओ हव्वा की औलाद पे क्या गुज़री है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैंगिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ना'त-ओ-मनक़बत
नबी के फ़ैज़ से वो दिल जो फ़ैज़याब नहींखिलेगा उस पे मसर्रत का कोई बाब नहीं