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कलाम
गंदुम को खा के 'रिज़वाँ' हैं ऐसे हाल में हमपहले 'उरूज पर थे अब हैं ज़वाल में हम
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
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ना'त-ओ-मनक़बत
रौशन जहाँ में हर जा पाता हूँ नूर तेराहर शै में देखता हूँ प्यारा ज़ुहूर तेरा
बेदम शाह वारसी
शे'र
जहान-ए-बे-ख़ुदी में मस्ती-ए-वहदत जो ले जायेफ़रिश्ते लें क़दम मेरे वो हूँ मैं रिंद-ए-मस्तान:
इब्राहीम आजिज़
ना'त-ओ-मनक़बत
वो कौन सुब्ह सवेरे जहाँ में आया हैकि जिस के आने से ख़िल्क़त का रंग निखरा है
तुफ़ैल अहमद मिसबाही
ना'त-ओ-मनक़बत
तेरी क़ुदरत के नज़ारे हैं जहाँ में बे-शुमारमैं तिरा बंदा हूँ या रब तू मिरा परवरदिगार
शारिक़ रब्बानी
ना'त-ओ-मनक़बत
मिरा जहाँ में ज़ुहूर-ओ-ख़िफ़ा मु’ईनी हैमैं वो हूँ जिस की फ़ना-ओ-बक़ा मु’ईनी है
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ना'त-ओ-मनक़बत
रहेगा हश्र तक क़ाएम जहाँ में नाम वारिस काहर इक मोमिन को पहुँचेगा सदा पैग़ाम वारिस का