है जुमला जहाँ परतव-ए-अनवार-ए-मोहम्मद
है जुमला जहाँ परतव-ए-अनवार-ए-मोहम्मद
हर सम्त से है दा'वत-ए-दीदार-ए-मोहम्मद
कितनों ही ने पाया उन्हें और फिर भी न पाया
असरार ही असरार हैं असरार-ए-मोहम्मद
खोई हुई दुनिया-ए-मोहम्मद ही से पूछो
क्या था असर लज़्ज़त-ए-गुफ़्तार-ए-मोहम्मद
सरशार मय-ए-'इश्क़ हूँ सरशार मय-ए-'इश्क़
मय-ख़्वार-ए-मोहम्मद हूँ मैं मय-ख़्वार-ए-मोहम्मद
सिद्दीक़-ओ-’उमर हों कि वो ’उस्मान-ओ-’अली हों
छनते हैं हर इक पर्दा-ए-अनवार-ए-मोहम्मद
तश्बीह का आईना है तनज़ीह का जल्वा
अल्लाह का दीदार है दीदार मोहम्मद
होता है ज़बाँ पर मिरी जो कुछ भी 'अता हो
अफ़्कार-ए-सुख़न हैं मिरे अफ़्कार-ए-मोहम्मद
क़ुर्बान तिरे फ़ज़्ल तिरी शान-ए-करम के
अल्लाह दिखा दे मुझे दरबार मोहम्मद
निस्बत भी 'अजब चीज़ है महबूब-ए-ख़ुदा से
मतलूब-ए-दो-’आलम है तलब-गार-ए-मोहम्मद
मरना ही मोहब्बत में हयात-ए-अबदी है
अच्छा है कि अच्छा न हो बीमार-ए-मोहम्मद
होते हैं अदा 'इश्क़ के सज्दे यहीं 'कामिल'
हैं ताक़-ए-हरम अब्रू-ए-ख़म-दार-ए-मोहम्मद
- पुस्तक : वारदात-ए-कामिल (पृष्ठ 52)
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