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साखी
चितावनी का अंग - 'कबीर' नाव है झाँझरी कूरा खेवनहार
'कबीर' नाव है झाँझरी कूरा खेवनहारहलके हलके तिर गये बूड़े जिन सिर भार
कबीर
साखी
चितावनी का अंग - 'कबीर' नाव तो झाँझरी भरी बिराने भार
'कबीर' नाव तो झाँझरी भरी बिराने भारखेवट से परिचय नहीं क्यूँकर उतरै पार
कबीर
साखी
सेवक और दास का अंग - 'कबीर' ख़ालिक़ जागिया और न जागै कोय
'कबीर' ख़ालिक़ जागिया और न जागै कोयकै जागै बिषया भरा कै दास बंदगी जोय
कबीर
साखी
गुप्त रूप जहां धारिया, राधास्वामी नाम।
गुप्त रूप जहां धारिया, राधास्वामी नाम।बिना मेहर नहिं पावई, जहां कोई बिसराम।।
शिवदयाल सिंह
साखी
बैठक स्वामी अद्भुती, राधा निरख निहार।
बैठक स्वामी अद्भुती, राधा निरख निहार।और न कोई लख सके, शोभा अगम अपार।।
शिवदयाल सिंह
साखी
संत दिवाली नित करें, सत्तलोक के माहिं।
संत दिवाली नित करें, सत्तलोक के माहिं।और मते सब काल के, योंही धूल उड़ाहिं।।
शिवदयाल सिंह
पद
कहैं ‘कबीर’ सुनो हो साधो अमृत-बचन हमार
कहैं 'कबीर' सुनो हो साधो अमृत-बचन हमारजो भल चाहो आपनौंं परखो करो बिचार
कबीर
साखी
मोटे जब लग जायं नहिं, झीने कैसे जाय।
मोटे जब लग जायं नहिं, झीने कैसे जाय।ताते सबको चाहिये, नित गुरु भक्ति कमाय।।
शिवदयाल सिंह
साखी
मोटे बन्धन जगत के, गुरु भक्ति से काट।
मोटे बन्धन जगत के, गुरु भक्ति से काट।झीने बन्धन चित्त के, कटें नाम परताप।।
शिवदयाल सिंह
पद
चेतावनी -घट भीतर तू जाग री, है सुरत पुरानी ।
घट भीतर तू जाग री, है सुरत पुरानी ।बिना देश झांकत रही, सब मर्म भुलानी।।
शिवदयाल सिंह
पद
आत्मशुद्धि - चूनर मेरी मैली भई, अब कापै जाऊं धुलान ।।
चूनर मेरी मैली भई, अब कापै जाऊं धुलान ।।घाट घाट मैं खोजत हारी, धुबिया मिला न सुजान।।
शिवदयाल सिंह
साखी
प्रेम का अंग - 'कबीर' प्याला प्रेम का अंतर लिया लगाय
'कबीर' प्याला प्रेम का अंतर लिया लगायरोम रोम में रमि रहा और अमल बया खाय