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ना'त-ओ-मनक़बत
तिश्नगी का होंटों से नाम जब मिटा डालाएक नन्हे असग़र ने कर्बला हिला डाला
ख़ालिद नदीम बदायूँनी
शे'र
मियान-ए-तिश्नगी प्यासों ने ऐसी लज़्ज़तें लूटींकि आब-ए-तेग़-ए-क़ातिल बे-मज़ा मा’लूम होता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
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ना'त-ओ-मनक़बत
जब कि सुब्हानल-लज़ी की मंज़िलें होंगी क़रीबजब कि होगी माद्दी-ए-मे'राज इंसाँ को नसीब
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
वसवसे आते नहीं ये मर्द-ए-कामिल के क़रीबदूर है मंज़िल से वो या है वो मंज़िल के क़रीब
अब्दुल रब तालिब
ना'त-ओ-मनक़बत
न कहीं से दूर हैं मंज़िलें न कोई क़रीब की बात हैजिसे चाहें उस को नवाज़ दें ये दर-ए-हबीब की बात है
मुनव्वर बदायूँनी
शे'र
गिर्या-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ का वक़्त आ पहुँचा क़रीबऐ गुलो देखो ये बे-मौक़ा' हँसी अच्छी नहीं
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
जो याँ कुछ चाहने वाले क़रीब-ए-यक-दिगर बैठेहम अपना दिल बग़ल में दाब लेकर आह कर बैठे
ख़्वाजा मीर दर्द
शे'र
क्यूँ-कर न क़ुर्ब-ए-हक़ की तरफ़ दिल मिरा कीजिएगर्दन असीर-ए-हल्क़ा-ए-हबल-उल-वरीद है
बेदम शाह वारसी
शे'र
न क़ुर्ब-ए-गुल की ताब थी न हिज्र-ए-गुल में चैन थाचमन चमन फिरे हम अपना आशियाँ लिए हुए
बेदम शाह वारसी
फ़ारसी कलाम
ऐ सर्व-ए-नाज़नीने ऐ तुर्क-ए-बे-नियाज़ेशोरे ज़दी ब-'आलम अज़ क़ामत-ए-दराज़े