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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ दिल म-बाश ख़ाली यक-दम ज़े-इश्क़-ओ-मस्तीवाँगह ब-रौ कि रस्ती अज़ नेस्ती-ओ-हस्ती
हाफ़िज़
शे'र
चु नै ख़ाली शुदम अज़ आरज़ूहा लैक इ'श्क़-ए-ऊब-गोशम मी-दमद हर्फ़े कि मन नाचार मी-नालम
ख़्वाजा मीर दर्द
फ़ारसी कलाम
न-बाशद ख़ाली अज़ तू हेच-बज़्म-ओ-हेच-मय-ख़ानःज़े-तुस्त आबादी-ए-आ'लम-जहाँ बे-तुस्त वीरानः
शाह तुराब अली क़लंदर
ग़ज़ल
हिकमत से ये ख़ाली नहीं लबरेज़ साक़ी जाम करदौर-ओ-तसलसुल में न फँस दीवानगी में नाम कर
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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शे'र
सब से हुए वो सीना-ब-सीना हम से मिलाया ख़ाली हाथई’द के दिन जो सच पूछो तो ईद मनाई लोगों ने
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
अगर जोगन तुम्हारे दर से ख़ाली हाथ जाएगीतो इस मजबूर की हालत ये दुनिया मुस्कुराएगी
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
शे'र
जल्वे से तिरे है कब ख़ाली फल फूल फली पत्ता डालीहै रंग तिरा गुलशन गुलशन सुब्हान-अल्लाह सुब्हान-अल्लाह
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
मँगते ख़ाली हाथ न लौटे कितनी मिली ख़ैरात न पूछोउन का करम फिर उन का करम है उन के करम की बात न पूछो
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
बैत
कोई शय ख़ाली नज़र आई न इस्म-ए-ज़ात से
कोई शय ख़ाली नज़र आई न इस्म-ए-ज़ात सेनक़्श-बंदी हूँ नज़र आता है नक़्श अल्लाह का
शाह अकबर दानापूरी
शे'र
तुम अपनी ज़ुल्फ़ खोलो फिर दिल-ए-पुर-दाग़ चमकेगाअंधेरा हो तो कुछ कुछ शम्अ' की आँखों में नूर आए