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ग़ज़ल
तवक़्क़ो' है कि बदलेगा ज़माना लेकिन ऐ 'मैकश'ज़माना है यही तो हो चुके इंसान याँ पैदा
मयकश अकबराबादी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
अनवर फ़िरोज़पुरी
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कलाम
दाग़ देहलवी
कलाम
बस उसी ख़ता पे मिरे लिए मय-ए-ला-ला-गूँ है न जाम हैकि गदाई दर-ए-मय-कदा मरी तिश्नगी पे हराम है
इक़बाल सफ़ीपुरी
पद
जो दीसै सो तो नाही है सो कहा न जाई
जो दीसै सो तो नाही है सो कहा न जाईबिन देखै परतीत न आवै कहै न को पतियाना
कबीर
कलाम
मुझ को सूझा भी तो क्या 'मज्ज़ूब' वहशत का 'इलाजमैं ने दिल वाबस्ता-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ कर दिया